Ye Jindagi ऐ ज़िन्दगी
…यह किस तरह की हो गई हूँ मैं, खुद के संभाले नहीं संभल रही हूँ, यह दिल बार-बार अचानक से क्यों तेज-तेज धड़कने लगता है, कभी बेचैन होती हूँ, तो कभी फूट-फूटकर रो लेती हूँ, यह सब क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है, इन सब से मुझे निकलना ही होगा, या मुझे ठान लेना होगा तभी संभव होगा, डर किस का है, जीवन का या मौत का, जो भी हो सामना तो करना ही होगा, तैयार भी रहना ही होगा।
…..ये बेचैनी तू मुझे यूँ न तड़पा, इस तरह न मेरे पास बार-बार आकर मुझे न सता, क्यों करती है विवश कि मैं तेरे साथ बेचैनी में बनी रहूँ, और तू खुश होती रहे, तू समझ ले, मैं तेरे बेचैन करने से बेचैन जरूर होती हूँ, पर तुरन्त संभल जाती हूँ, मुझे पता है, यह तो तेरी शरारत है, पर तू मुझ पर हावी नहीं हो सकती।
…मुझ पर बहुत बड़ी-बड़ी संभावनाएँ लदी है, इसलिए मैं उन संभावनाओं पर खरी उतरने वाली हूँ, मैं हार मान के पीछे हटने वाली भी नहीं हूँ, मैं अपनी यादों को सहेज कर समेट कर रखूँगी, पर कभी उनसे बेचैन नहीं होऊँगी, क्योंकि वह मेरे सुखद पल हैं, जिन्हें मैंने अपने जीवन में जी लिया, और अब उन्हें अपनी यादों में जिऊँगी… तो ये बेचैनी, तू मुझसे दूर रह, मेरे तू करीब न आ, तू कहीं और अपना ठिकाना ढूंढ, क्योंकि मेरा दरवाजा खुशी खटखटा रही है, मैं उसे कैसे दरवाजे पर खड़ी रखूँ, वह मेरे लिए ही है तो आई है, तो फिर मैं क्यों न उसका साथ दूँ, मुझे उसके साथ खुश रहना है समझी तुम…..
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