आसमान बुनती औरतें

भाग (134)

चारों चुप है क्या कहें कुछ सेकंड बाद ही वह लोग उठ कर चले गये
रघु ने पलट कर देखा कि मॉम डैड फ्री हुये हैं तो खड़ा हुआ, उधर से उसके पिता ने उसे वहीं बैठे रहने को कहा और दोनों उठकर इन के पास आ गये।

चारों खड़ी हो गई रघुवीर ने चारों का परिचय कराया चारों ही चरण वंदन को झुक गई, ढेर सारा आशीर्वाद पा लिया।

“सदा खुश रहो, जुग-जुग जियो!”…दोनों ने एक साथ सब बच्चों को आशिष दिया।

“रानी आप इधर आइये हमारे पास बैठो बेटा।”…रघुवीर की मम्मी ने रानी को अपने करीब बुला कर बैठा लिया।

रघुवीर के मम्मी पापा बेहद सौम्य और शांत स्वभाव के लग रहे हैं जैसे कोई संत महात्मा, परम शांति उनके चेहरे पर शान्ति की आभा बिखरी हुई है, उनसे मिलने के पहले का जो डर था वह काफूर हो गया इतनी सॉफ्ट और इतने नरम की लगा ही नहीं कि हम पहले कभी मिले नहीं हैं चारों ने राहत की सांस ली।

राखी सोच रही थी कि रमन के परिवार से तो बहुत ही अच्छे मिली हैं उसके यहाँ तो स्वार्थ के अलावा कुछ नहीं भरा है सिर्फ रमन से पैसा वसूल करने की मशीन समझ रखा है यहाँ ऐसा कुछ अभी तक तो नहीं लगा बातों के बाद पता चलेगा पर कोई भी माँ बाप अपने बच्चों की खुशी देखना चाहता है, यहाँ ऐसा कुछ माहौल दिख नहीं रहा है देखते हैं आगे बातों में पता चलेगा कि क्या स्थिति है।

रघुवीर का एक छोटा भाई भी है इनके दो बेटे हैं और अब रघुवीर की शादी करना चाहते हैं और उनके यहाँ लड़कों की पसंद को ही प्राथमिकता दी जाती है खानापूर्ति के तौर पर माँ-बाप परिवार और लड़की की शिक्षा और उसके व्यवहार को परखते हैं।

“कैसी है ब्यूटिफूल गर्ल्स !… रघु के डेड ने बैठते ही संबोधित किया।

“हम ठीक हैं अंकल जी!” … चारों ने ही हाथ जोड़ दिए।

“माॅफ करें बच्चों इंतजार करना पड़ा।” रघु के पिता बोले।

“कोई बात नहीं अंकल जी, तब तक हम रघुवीर से बात करते रहे।”..राखी बोली।

“रघु, पहले कुछ खिला पिला लेते हैं फिर बात करते हैं श्यामलाल को बुलाओं।”… रघुवीर की माँ बोली।

रघुवीर ने श्यामलाल को आवाज दी, चारों के मुंँह से कोई आवाज नहीं निकल पाई, न वह मना कर सकी न ही हाँ कहते बना क्योंकि उनके सामने बैठा व्यक्तित्व ही इतना उर्जावान तेज का धनी है कि उनसे साधारण बात करना भी आसान नहीं है।

क्रमश:..

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