ग़ज़ल
हमको उलफत के जो इल्ज़ाम दिए जाते हैं,
हम ये समझे हैं कि गुलफाम किए जाते हैं।
साथ अपना ही रहा चोली-ओ-दामन जैसा,
फिर भी अपने ही तो हैं चोट दिये जाते हैं।
जिसको हम अपनी दुआओं में सलामत मांगें,
छल वो हर दौर में हमसे ही किए जाते हैं।
मुश्किलें में घेर ही लेती हैं सभी को अक्सर,
जख्म उजड़े हैं जो फिर फिर वो सिये जाते हैं।
सांसों में बस गये हो तो भूले कैसे बता दो,
सब की नजरों से ही तो छुपये जाते हैं।
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