ग़ज़ल
अरमान छुपे दिल में हैं हम जान गए हैं,
सब बात को अपनी तो यहाँ मान गए हैं।
पिंजरा जो खुला पंछी उड़ा उड़ता गया,
बेवजह कई जग से परेशान गए हैं।
कुछ देख गलत हमने अगर मूंद ली आँखें,
मत भूल कि जानिब उसे पहचान गए है।
उल्फत की नदी में कोई साहिल नहीं मिलता,
पतवार लिए झेल के तूफान गए हैं।
रुखसत भी किया जिसको बड़े प्यार से हमने
मासूम से चेहरे लिए ईमान गए हैं।
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