Gajal ग़ज़ल

उन्हें आजमाने के दिन आ रहे हैं,
मुकद्दर बनाने के दिन आ रहे हैं ।

हमें अपने पहलू में थोड़ी जगह दो,
कहानी सुनाने के दिन आ रहे हैं ।

समंदर में दरिया के जैसा समाओ,
सिमट आज जाने के दिन आ रहे हैं।

रहम कुछ करो न सताओ हमें तुम,
अभी मुस्कुराने के दिन आ रहे हैं।

अजब सा हुआ चार सू यह तमाशा,
कतारें लगाने के दिन आ रहे हैं।

तुम्हारे लिए रूह मेरी तड़पती,
तुम्हारे तो आने के दिन आ रहे हैं ।

©A

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